

टोरंटो। आजकल स्कूलों में बच्चों की आयु और हाइट से ज्यादा वजन उनके बैग में होता है। केजी और पीजी के बच्चों के बैग में किताबों का वजन उनकी उम्र से दुगुना होता है। समय के साथ स्कूल के बच्चों के बैग का वजन भी बढ़ता जा रहा है।
उन पर पढ़ाई का एक तरह से प्रेशर बढ़ता जा रहा है जो कि उनके लिए हानिकारक है। बच्चों की पीठ पर बैग का इतना वजन हो जाता है कि उनसे चला भी नहीं जाता है। बच्चों के माता-पिता को उनक बैग ऑटो या गाड़ी में रखना पड़ता है।
इससे बच्चों के मां-बाप की चिंता बढ़ती जा रही है कि कहीं यह वजन उनकी पीठ को बचपन में ही ना तोड़ दें। इसके अलावा किसी ट्रिप पर जाते समय भी बच्चों के बैकपैक में बहुत सारा वजन हो जाता है।
अगर आप अपने बच्चे के बस्ते के बोझ को लेकर चिंतित हैं तो चैन की सांस ले सकते हैं क्योंकि एक नए अध्ययन के मुताबिक पीठ पर लादे जाने वाले बस्ते में एक मुनासिब वजन होने और उसके सही फिट आने पर बच्चे की पीठ को नुकसान पहुंचने की आशंका नहीं है।
कनाडा के ब्रोक यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफ़ेसर माइकल होम्स ने कहा, ”हाल में आए अध्ययन से माता पिताओं की चिताएं कम हो सकती हैं क्योंकि इससे पता चला है कि बस्ते के इस्तेमाल और दर्द के बीच संबंध के ज्यादा सबूत नहीं हैं।’’ उन्होंने कहा कि जैवयांत्रिकी और पीठ में दर्द के बीच संबंध को स्थापित करना मुश्किल रहा है।
होम्स ने कहा, ”मेरा मानना है कि अगर माता पिता हैं तो आपको इस संबंध में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ”अगर किसी बस्ते में मुनासिब वजन है एवं वह सही फिट आ रहा है और बच्चे उसे ज्यादा देर तक पीठ पर नहीं लाद रहे तो उसका लंबे समय के लिए नुकसान नहीं होगा। एजेंसी
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